गोवर्धन पूजा आज, जानें शुभ योग और पूजा विधि
हर साल कार्तिक माह में आने वाली शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करने का विधान है।
नई दिल्ली (आरएनआई) सनातन धर्म के लोगों के लिए पांच दिवसीय दिवाली उत्सव का विशेष महत्व है। आज पांच दिवसीय दिवाली उत्सव का चौथा दिन है जिसमें गोवर्धन पूजा की जाती है।
वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक माह में आने वाली शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करने का विधान है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करने से साधक के समस्त दुख और संताप दूर हो जाते हैं। चलिए जानते हैं इस बार कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि कब है, जिस दिन गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाएगा।
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल कार्तिक माह में आने वाली शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि का आरंभ 1 नवंबर 2024 को सायं 06 बजकर 16 मिनट से हो रहा है, और इसका समापन अगले दिन 2 नवंबर को रात 08 बजकर 21 मिनट पर होगा। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर गोवर्धन पूजा का पर्व 2 नवंबर 2024 को मनाया जाएगा।
2 नवंबर 2024 को गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त प्रात: काल 6 बजे से लेकर 8 बजे तक है। इसके बाद दोपहर में 03:23 मिनट से लेकर 05:35 मिनट के बीच भी पूजा की जा सकती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार भगवान इंद्र ब्रजवासियों से क्रोधित हो गए और भारी बारिश कर दी। भगवान इंद्र के प्रकोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली से उठा लिया था। तभी से हर वर्ष गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। यह त्योहार प्रकृति को समर्पित है। साथ ही यह पर्व प्रकृति की सेवा और पूजा करने का एक अच्छा संदेश भी देता है।
गोवर्धन पूजा के दिन प्रातःकाल गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत और भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति बनाई जाती है।
मूर्ति को फूलों और रंग से सजाएं।
गोवर्धन पर्वत और भगवान श्री कृष्ण की पूजा करें।
भगवान को फल, जल, दीपक, धूप और उपहार अर्पित करें।
कढ़ी और अन्नकूट चावल का भोग लगाएं।
इसके बाद इस दिन गाय, बैल और भगवान विश्वकर्मा की पूजा करें।
पूजा करने के बाद गोवर्धन पर्वत की सात बार परिक्रमा करें और इस दौरान जल हाथ में लेकर मंत्र का जाप करें।
अंत में आरती करके पूजा का समापन करें।
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