गूगल पर अमेरिकी अदालत के फैसले से और कसेगा प्रतिस्पर्धा आयोग का शिकंजा, सख्त नियम बनाने का मिलेगा आधार
भारत में, गूगल के खिलाफ मामले सीसीआई में लंबित हैं और कुछ महीने पहले ही डिजिटल प्रतिस्पर्धा विधेयक का मसौदा प्रसारित किया गया है। जबकि सीसीआई अभी तक गूगल के खिलाफ फैसला सुनाने में हिचकिचा रहा है।
नई दिल्ली (आरएनआई) दुनिया के दिग्गज सर्च इंजन गूगल की अविश्वास प्रथाओं के खिलाफ अमेरिकी अदालत के ऐतिहासिक फैसले ने भारत में प्रतिस्पर्धा नियामकों, नीति निर्माताओं के लिए जमीनी निहितार्थ पैदा किए हैं। इस अग्रणी फैसले में अमेरिकी जिला जज वाशिंगटन डीसी अमित मेहता ने गूगल को एकाधिकारवादी बताया है। अब भारत में भी गूगल पर प्रतिस्पर्धा आयोग का शिकंजा कसा जा सकेगा।
मीडिया संस्थाओं के साथ राजस्व साझा करने में अनुचित व्यवहार से लेकर अपारदर्शी संचालन व भारत के इंटरनेट क्षेत्र में अनुचित प्रभाव डालने तक, इन बड़ी अमेरिकी टेक कंपनियां भारत में बढ़ती जांच के दायरे में आ गई हैं। हालांकि, हाल ही में कई मोर्चों पर चीजें थोड़ी धीमी गति से आगे बढ़ी हैं। भारत में, गूगल के खिलाफ मामले सीसीआई में लंबित हैं और कुछ महीने पहले ही डिजिटल प्रतिस्पर्धा विधेयक का मसौदा प्रसारित किया गया है। जबकि सीसीआई अभी तक गूगल के खिलाफ फैसला सुनाने में हिचकिचा रहा है। कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय का मसौदा डिजिटल प्रतिस्पर्धा विधेयक, डिजिटल मीडिया के लिए एंटी ट्रस्ट उपाय को शामिल करने की आवश्यकता को लगभग अनदेखा करता है। इसमें कहा गया है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को इस पर विचार करना चाहिए। लेकिन अमेरिकी अदालत के फैसले के बाद इसमें तेजी आने की उम्मीद है।
भारत में डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (डीएनपीए) और इंडियन न्यूजपेपर एसोसिएशन (आईएनए) ने इस साल की शुरुआत में दर्ज की गई गंभीर अविश्वास प्रथाओं की शिकायतों के बाद सीसीआई ने गूगल के खिलाफ जांच शुरू की है। बाद में भारत के न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (एनबीडीए) ने भी गूगल को आड़े हाथों लिया और सीसीआई में शिकायत दर्ज कराई।
अमेरिकी जज के गूगल को एकाधिकारवादी घोषित करने वाले फैसले से दुनिया की बिग टेक कंपनियों की अविश्वास प्रथाओं के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में एक बड़ा बदलाव आएगा। गूगल इन अविश्वास प्रथाओं व बाजार प्रभुत्व का सबसे बड़ा बेंचमार्क है। जज मेहता ने कहा कि गूगल ने शर्मन अधिनियम की धारा 2 का उल्लंघन किया है, जिससे सर्च सेवाओं और संबंधित विज्ञापन पर इस तकनीकी दिग्गज के अवैध एकाधिकार की पुष्टि होती है।
अब भारतीय नियामक संस्थाओं पर उनकी ताकत दिखाने का दबाव है। उन्हें दिखाना होगा कि 140 करोड़ की आबादी वाले देश में वैश्विक बहुराष्ट्रीय एकाधिकार को और अधिक पारदर्शी व निष्पक्ष बनाने की क्षमता है।
डिजिटल समाचार मीडिया समेत भारतीय डिजिटल कंपनियां भी गूगल सर्च इंजन पर ऑनलाइन ट्रैफिक में हेरफेर का आरोप लगाती रही हैं। यह भी आरोप है कि गूगल विज्ञापन राजस्व के बारे में जानकारी साझा करने में पारदर्शी नहीं है। कंपनियों का कहना है कि भले ही उनमें से कई ने गूगल के साथ राजस्व साझेदारी समझौते किए हैं, लेकिन वे समझौते मजबूरी में हैं और ये करार उचित नहीं हैं।
इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय पिछले कुछ सालों से डिजिटल इंडिया एक्ट पर काम कर रहा है था, जबकि कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने अपना खुद का मसौदा डिजिटल प्रतिस्पर्धा विधेयक तैयार किया। हालांकि यह डिजिटल समाचार प्रकाशकों की बुनियादी मांग को संबोधित करने में विफल रहा और प्री बार्गेनिंग कोड के सफल और विश्वसनीय उपकरण की अनदेखी की।
90% ऑनलाइन सर्च बाजार पर है गूगल का कब्जा
95% सर्च स्मार्टफोन में गूगल पर की जाती हैं
40% ऑनलाइन विज्ञापन राजस्व बाजार पर भी नियंत्रण
Follow RNI News Channel on WhatsApp: https://whatsapp.com/channel/0029VaBPp7rK5cD6XB2
What's Your Reaction?