गल बाबा का मेला जहां हर मन्नत होती है पूरी

Mar 9, 2023 - 17:00
 0  2.1k

गुना। गुना के कई गांवों में लकड़ी से बना एक मचान होता है, आम दिनों में जिसकी अहमियत समझ नहीं आती है। लेकिन उस मचान, जिसे गल कहा जाता है, का आदिवासी परंपरा में गहरा महत्व है। यहां साल भर में विभिन्न परेशानियों से जूझ रहे व्यक्ति अपने इष्ट बाबादेव के नाम पर मन्नत लेते हैं, इस उम्मीद में कि अगली होली तक उनके दुःख दूर हो जाएं और फिर होली पर गल जीवंत हो उठता है। गल के चारों ओर मेला भरता है। हजारों लोग इकट्ठे होते हैं। जिनकी मन्नतें पूरी हो जाती हैं, वे सजधज कर गांव वालों के साथ आते हैं। ढ़ोल मांदल की थाप पर भीली नृत्य आरंभ होता है। मन्नत उतारने हेतु व्यक्ति गल पर चढ़ता है। मोटे लकड़ से उसे धरती के समानांतर धरती की ओर चेहरा किए बांधा जाता है और मन्नत के अनुसार तीन, पांच या सात बार घुमाया जाता है। हर्षोल्लास होता है मानो बाबादेव से जो पाया है वो उन्हीं के चरणों में समर्पित कर दिया हो। किसी को कौतूहल हुआ कि मान लो कि मन्नत पूरी ना हो तो? तिस पर जवाब आया कि मन्नतें पूरी होती ही हैं। फिर एक और प्रश्न किसी ने किया कि यदि रस्सी खुल जाए और दुर्घटनावश व्यक्ति गिर जाए तो? तिस पर बताया गया कि बड़े बुजुर्गों की कहानियों और लोगों की आंखोंदेखी में तो ऐसा कभी हुआ ही नहीं। खैर, अंचल में जो आठ दिन का जश्न भगोरिया से प्रारंभ हुआ था वो इस प्रकार गल देव पर मन्नतें उतारने के साथ पूरा हुआ। बच्चों से लेकर बुजुर्गों की मुस्कान का ये उत्सव अगले बरस तक के लिए स्थगित हुआ। अब आदिवासी पुनः जुटेंगे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में जिसमें उतार भी होंगे और चढ़ाव भी, तब तक कि जब तक अगला भगोरिया ना आ जाए जहां सिर्फ चढ़ाव ही चढ़ाव है, उतार नहीं है। कार्यक्रम में रणविजय भूरिया जिला अध्यक्ष जयस, सुरेश पटेलिया, रोहित कटारा ,कैलाश पटेलिया, कालू पटेलिया, प्रकाश पटेलिया,अर्जुन नलवाया, सुनील आदि जयस कार्यकर्ता मौजूद रहे।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow