सुप्रीम कोर्ट: खनिजों पर रॉयल्टी बकाया की वसूली का मामला, राज्यों की याचिका पर सुनवाई के लिए गठित की जाएगी पीठ

सुप्रीम कोर्ट ने खनिजों की खदानों को लेकर एक और अहम फैसला सुनाया था। अदालत ने कहा था कि खनिजों पर बकाया रॉयल्टी को भी राज्य सरकार वसूल सकेगी। अब राज्यों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई के लिए अदालत ने बड़ा फैसला लिया है।

Sep 11, 2024 - 13:10
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सुप्रीम कोर्ट: खनिजों पर रॉयल्टी बकाया की वसूली का मामला, राज्यों की याचिका पर सुनवाई के लिए गठित की जाएगी पीठ

नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को झारखंड जैसे खनिज समृद्ध राज्यों की याचिकाओं पर सुनवाई के लिए एक पीठ गठित करने पर सहमति जताई। अदालत ने कहा कि याचिकाओं में केंद्र और खनन कंपनियों से हजारों करोड़ रुपये मूल्य के खनिज अधिकारों और खनिज युक्त भूमि पर रॉयल्टी और कर बकाया वसूलने की मांग की गई है। इसलिए याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए एक पीठ गठित की जाएगी। 

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय पीठ ने 25 जुलाई को 8:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि खनिज अधिकारों पर कर लगाने की विधायी शक्ति राज्यों के पास है, संसद में नहीं। 

इसके बाद 14 अगस्त को दिए गए आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने खनिज संपन्न राज्यों को बड़ी राहत देते हुए उन्हें खनिजों और खनिज-युक्त भूमि पर केंद्र सरकार से 12 वर्ष में क्रमबद्ध तरीके से रॉयल्टी तथा कर पर एक अप्रैल 2005 से बकाया लेने की बुधवार को अनुमति दे दी थी।

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा था कि 25 जुलाई के आदेश को आगामी प्रभाव से लागू करने की दलील खारिज की जाती है। पीठ की ओर से फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि इस अदालत ने उसके समक्ष आए सवालों का 8:1 के बहुमत से 25 जुलाई को जवाब दे दिया था। साथ ही खदानों, खनिज-युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार राज्यों को दिया था।

उन्होंने कहा कि 25 जुलाई का फैसला सुनाने के बाद केंद्र सरकार ने इस फैसले को आगामी प्रभाव से लागू करने का अनुरोध किया था। मामले पर 31 जुलाई को सुनवाई की गई थी। केंद्र ने खनिज संपन्न राज्यों को 1989 से खनिजों और खनिज-युक्त भूमि पर लगाई गई रॉयल्टी उन्हें वापस करने की मांग का विरोध करते हुए कहा था कि इसका असर नागरिकों पर पड़ेगा और प्रारंभिक अनुमान के अनुसार, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (पीएसयू) को अपने खजाने से 70,000 करोड़ रुपये निकालने पड़ेंगे।

झारखंड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने बुधवार को मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ से आग्रह किया कि बकाया राशि की वसूली और उसे वसूलने में आने वाली कानूनी बाधाओं से संबंधित याचिकाओं को एक पीठ को आवंटित किया जाए।

अधिवक्ता ने कहा, 'यह नौ न्यायाधीशों की पीठ के फैसले के बाद उठाए जाने वाले कदमों के बारे में है। सभी मामलों को अब एक साथ रखा गया है।'

कुछ निजी खनन फर्मों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा कि अब राज्य सरकारें धन की वसूली चाहती हैं। इस पर सीजेआई ने कहा, 'मैं पीठ गठित करूंगा। इसमें उन न्यायाधीशों में से एक को नियुक्त करूंगा, जो (संविधान) पीठ में हमारे साथ थे।'

जहां कहीं भी खनिजों की खदान पाई जाती है उसे किसी कंपनी को अलॉट किया जाता है। इस खदान से निकलने वाले खनिज पर जो पैसे सरकार को दिए जाते हैं उसे ही रॉयल्टी कहा जाता है। सरकार उस जमीन का पट्टा देने के लिए टैक्स अलग से भी लेती है। यानी जमीन के लिए अलग टैक्स और उस जमीन से निकलने वाले खनिज की मात्रा पर रॉयल्टी देनी पड़ती है। अभी तक इन पैसों पर केंद्र सरकार का अधिकार था लेकिन अब इसे राज्य को दिया जाएगा।

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