क्या है कच्चातिवु द्वीप की कहानी
इंदिरा सरकार ने इसे श्रीलंका को क्यों दिया था, द्वीप का महत्व कितना?
नई दिल्ली (आरएनआई) कच्चातिवु द्वीप का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। वजह है एक आरटीआई आवेदन से निकलकर आई जानकारी। दरअसल, तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने आरटीआई दायर कर कच्चातिवु के बारे में पूछा था। अब आरटीआई के जवाब में कहा गया है कि सन 1974 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और श्रीलंका की राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके ने एक समझौता किया था। इसके तहत कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को औपचारिक रूप से सौंप दिया गया था।
जानकारी सामने आने के बाद भाजपा कांग्रेस पर हमलावर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर विदेश मंत्री ने इस मुद्दे को उठाया है। पीएम ने कहा है कि भारत की एकता, अखंडता और हितों को कमजोर करना कांग्रेस का 75 सालों से काम करने का तरीका रहा है। इससे पहले अगस्त 2023 में प्रधानमंत्री ने विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर जवाब देते हुए भी इस मुद्दे को उठाया था। लोकसभा चुनाव से पहले यह विषय एक बार फिर सुर्खियों में है।
कच्चातिवु द्वीप को 1974 में श्रीलंका को दिए जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर कांग्रेस और डीएमके पर निशाना साधा। पीएम मोदी ने डीएमके और कांग्रेस को एक ही परिवार की इकाइयां बताते हुए उन्हें जवाब दिया है। गौरतलब है कि पीएम ने एक दिन पहले ही कच्चातिवु का जिक्र करते हुए दोनों पार्टियों को राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर घेरा था।
पीएम मोदी ने डीएमके पर निशाना साधते हुए कहा, 'डीएमके ने तमिलनाडु के हित के लिए कुछ भी नहीं किया। कच्चातिवु द्वीप पर सामने आए नए विवरणों ने डीएमके के दोहरे मापदंडों को पूरी तरह से उजागर कर दिया है। कांग्रेस और डीएमके दोनों ही पारिवारिक इकाइयां है। उन्हें केवल अपने बेटे-बेटियों की फिक्र है। इसके अलावा उन्हें किसी और की कोई फिक्र नहीं है। कच्चातिवु द्वीप पर उनकी संवेदनहीनता ने हमारे गरीब मछुआरों के हितों को नुकसान पहुंचाया है।'
इससे पहले अगस्त 2023 में प्रधानमंत्री ने अविश्वास प्रस्ताव पर जवाब देते हुए भी यह मुद्दा उठाया था। प्रधानमंत्री ने कहा था, 'ये कच्चातिवु है क्या? किसने किसी दूसरे देश को दिया था? कब दिया था? क्या वह हमारी मां भारती का अंग नहीं था। इंदिरा गांधी के नेतृत्व में इसे श्रीलंका को दे दिया गया। यह कांग्रेस का इतिहास है। मां भारती को छिन्न-भिन्न करने का इतिहास।'
कच्चातिवु पाक जलडमरूमध्य में एक छोटा सा द्वीप है, जो बंगाल की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है। 285 एकड़ हरित क्षेत्र 1976 तक भारत का था। हालांकि, श्रीलंका और भारत के बीच एक विवादित क्षेत्र है, जिस पर आज श्रीलंका हक जताता है। दरअसल, साल 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने समकक्ष श्रीलंकाई राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के साथ 1974-76 के बीच चार समुद्री सीमा समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे। इन्हीं समझौते के तहत कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया गया।
कच्चातिवू द्वीप का निर्माण 14वीं शताब्दी में ज्वालामुखी विस्फोट के कारण हुआ था। यह कभी 17वीं शताब्दी में मदुरई के राजा रामानद के अधीन था। ब्रिटिश शासनकाल में यह द्वीप मद्रास प्रेसीडेंसी के पास आया। 1921 में श्रीलंका और भारत दोनों ने मछली पकड़ने के लिए भूमि पर दावा किया और विवाद अनसुलझा रहा। आजादी के बाद इसे भारत का हिस्सा माना गया।
यह द्वीप सामरिक महत्व का था और इसका उपयोग मछुआरे करते थे। हालांकि इस द्वीप पर श्रीलंका लगातार दावा जताता रहा। यह मुद्दा तब उभरा जब भारत-श्रीलंका ने समुद्री सीमा समझौते पर हस्ताक्षर किए। साल 1974 में 26 जून को कोलंबो और 28 जून को दिल्ली में दोनों देशों के बीच इस द्वीप के बारे में बातचीत हुई। इन्हीं दो बैठकों में कुछ शर्तों के साथ इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया।
तब शर्त यह रखी गई कि भारतीय मछुआरे अपना जाल सुखाने के लिए इस द्वीप का इस्तेमाल कर सकेंगे और द्वीप में बने चर्च में भारत के लोगों को बिना वीजा के जाने की अनुमति होगी। समझौतों ने भारत और श्रीलंका की अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा चिह्नित कर दी। हालांकि, इस समझौते का तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने कड़ा विरोध किया था।
श्रीलंका में अलगाववादी समूह लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) के सक्रिय वर्षों के दौरान, श्रीलंकाई सरकार ने सैन्य अभियानों के मुद्दों को उठाते हुए पानी में श्रीलंकाई मछुआरों की आसान आवाजाही को प्रतिबंधित कर दिया था। 2009 में श्रीलंका ने पाक जलडमरूमध्य में अपनी समुद्री सीमा की कड़ी सुरक्षा शुरू कर दी। 2010 में एलटीटीई के साथ संघर्ष की समाप्ति के साथ श्रीलंकाई मछुआरों ने फिर से पाक खाड़ी में अपना आंदोलन शुरू कर दिया और अपने खोए हुए क्षेत्र को दोबारा हासिल कर लिया।
तमिलनाडु की तमाम सरकारें 1974 के समझौते को मानने से इनकार करती रहीं और श्रीलंका से द्वीप को दोबारा प्राप्त करने की मांग उठाती रहीं। 1991 में तमिलनाडु विधानसभा द्वारा समझौते के खिलाफ एक प्रस्ताव लाया गया जिसके जरिए द्वीप को पुनः प्राप्त करने की मांग की गई थी।
2008 में तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता केंद्र के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं और कच्चातिवु समझौतों को रद्द करने की अपील की। उन्होंने कहा था कि श्रीलंका को कच्चातिवु उपहार में देने वाले देशों के बीच दो संधियां असंवैधानिक हैं। इसके अलावा साल 2011 में जयललिता ने एक बार फिर से विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराया।
मई 2022 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने पीएम मोदी की मौजूदगी में एक समारोह में मांग की थी कि कच्चातिवु द्वीप को भारत में पुनः प्राप्त किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा था कि पारंपरिक तमिल मछुआरों के मछली पकड़ने के अधिकार अप्रभावित रहें, इसलिए इस संबंध में कार्रवाई करने का यह सही समय है।
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