कोको के करीबी पौधे की तीन नई प्रजातियां खोजीं, दावा- दुनियाभर में इनसे चॉकलेट उत्पादन में होगी वृद्धि
शोधकर्ताओं के अनुसार दक्षिण अमेरिकी वर्षा वनों में पाए जाने प्रजातियां कोको की करीबी रिश्तेदार हैं, जिस पर कोको बीन्स उगते हैं। कोको के पेड़ के तने और शाखाओं पर फल लगते हैं। इन्हें फली कहते हैं। फली में बीज होते हैं जिन्हें कोको बीन्स कहते हैं।
नई दिल्ली (आरएनआई) दक्षिण अमेरिका के वर्षा वनों में वैज्ञानिकों ने कोको बीन्स के करीबी पौधे की तीन नई प्रजातियां खोजी हैं। यह नई प्रजितयां थियोब्रोमा ग्लोबोसम, थियोब्रोमा नर्वोसम और थियोब्रोमा शुल्टेसी हैं। हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन और काली फली रोग (ब्लैक पॉड डिसीज ) की वजह से कोको के पौधों पर विनाशकारी खतरा मंडराने लगा है। इसका असर चॉकलेट उत्पादों पर भी पड़ा है। वैज्ञानिकों को भरोसा है कि इन नई प्रजातियां की खोज से चॉकलेट उत्पादों को मौसम में होने वाले बदलावों को झेलने में मदद मिल सकती है।
यूनिवर्सिटी कॉलेज कॉर्क, यूनिवर्सिटी ऑफ साओ पाउलो और न्यूयॉर्क बॉटनिकल गार्डन के वैज्ञानिकों ने इसकी खोज की और शोध के नतीजे जर्नल केव बुलेटिन में प्रकाशित हुए हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार दक्षिण अमेरिकी वर्षा वनों में पाए जाने प्रजातियां कोको की करीबी रिश्तेदार हैं, जिस पर कोको बीन्स उगते हैं। कोको के पेड़ के तने और शाखाओं पर फल लगते हैं। इन्हें फली कहते हैं। फली में बीज होते हैं जिन्हें कोको बीन्स कहते हैं। बीन्स एक बीज आवरण, एक कर्नेल और एक रोगाणु से बने होते हैं। कोको बीन्स को भूनकर और पीसकर कोको निब्स बनाए जाते हैं, जिनका इस्तेमाल चॉकलेट, चॉकलेट उत्पादों और कोको चाय बनाने के लिए किया जाता है।
प्रमुख शोधकर्ता डॉ. जेम्स रिचर्डसन के अनुसार इस खोज से कोको के ऐसे पेड़ तैयार करने में मदद मिल सकती है, जो जलवायु में आ रहे बदलावों और काली फली रोग का सामना करने के लिए कहीं ज्यादा सक्षम होंगे। ऐसे में बदलती जलवायु और रोगों का मुकाबला करते हुए भी चॉकलेट और अन्य कोको उत्पादों का उत्पादन जारी रह सकेगा।
शोधकर्ताओं का कहना है कि हाल ही में कोको की कीमतें तीन गुना बढ़ गईं हैं, क्योंकि पश्चिमी अफ्रीका में सूखे के कारण इनके उत्पादन में गिरावट आई थी। चॉकलेट में सबसे महत्वपूर्ण कच्चा माल कोको बीन्स की कीमत रिकॉर्ड 12,000 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई, जो पिछले साल की कीमत से लगभग चार गुना ज्यादा है। ऐसे में नई प्रजातियों की खोज से कोको के ऐसे पेडू तैयार होंगे, जो सूखा, भारी बारिश और रोगों का सामना करने के कहीं ज्यादा सक्षम होंगें।
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