केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर वक्फ अधिनियम का बचाव किया, कहा- याचिकाएं झूठी दलीलों पर आधारित
1,332 पन्नों के प्रारंभिक जवाबी हलफनामे में सरकार ने वक्फ कानून का बचाव किया और इसके खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज करने की मांग की। हलफनामा अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय में संयुक्त सचिव शेरशा सी शेख मोहिद्दीन की ओर से दायर किया गया। मामले की सुनवाई 5 मई को होनी है।

नई दिल्ली (आरएनआई) केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता के खिलाफ याचिकाओं को खारिज करने की मांग की। केंद्र ने अधिनियम के किसी भी प्रावधान पर रोक लगाने का विरोध करते हुए कहा, 'कानून में यह स्थापित स्थिति है कि संवैधानिक अदालतें किसी वैधानिक प्रावधान पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोक नहीं लगाएंगी। अदालतें मामले पर अंतिम रूप से निर्णय लेंगी।'
केंद्र ने कहा कि वक्फ-बाय-यूजर को वैधानिक संरक्षण से वंचित करने से मुस्लिम समुदाय के किसी व्यक्ति को वक्फ बनाने से वंचित नहीं किया जा सकता है। यहां एक जानबूझकर, उद्देश्यपूर्ण और भ्रामक कहानी बहुत ही शरारती तरीके से बनाई गई है, जिससे यह धारणा बनाई गई है कि जिन वक्फों ('वक्फ-बाय-यूजर' सहित) के पास अपने दावों का समर्थन करने के लिए दस्तावेज नहीं हैं, वे प्रभावित होंगे। यह न केवल असत्य और गलत है, बल्कि जानबूझकर इस अदालत को गुमराह करने वाला है।
केंद्र ने कहा कि धारा 3(1)(आर) के प्रावधान के तहत ‘वक्फ-बाय-यूजर’ के रूप में संरक्षित होने के लिए संशोधन में या उससे पहले भी किसी ट्रस्ट, डीड या किसी दस्तावेजी सबूत पर जोर नहीं दिया गया। प्रावधान के तहत संरक्षित होने के लिए एकमात्र अनिवार्य आवश्यकता यह है कि ऐसे ‘वक्फ-बाय-यूजर’ को 8 अप्रैल, 2025 तक पंजीकृत होना चाहिए, क्योंकि पिछले 100 वर्षों से वक्फों को नियंत्रित करने वाले कानून के अनुसार पंजीकरण हमेशा अनिवार्य रहा है।
केंद्र ने कहा कि याचिकाएं इस झूठे आधार के साथ लगाई गई हैं कि संशोधन धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों को छीन लेंगे। सुप्रीम कोर्ट विधायी क्षमता, अनुच्छेद 32 के तहत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर कानून की समीक्षा कर सकता है। संसदीय पैनल की ओर से व्यापक, गहन, विश्लेषणात्मक अध्ययन के बाद संशोधन किया गया है।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि निजी और सरकारी संपत्तियों पर अतिक्रमण करने के लिए प्रावधानों का दुरुपयोग किया गया है। मुगल काल से पहले स्वतंत्रता-पूर्व काल, स्वतंत्रता-पश्चात काल में कुल वक्फों की संख्या 18,29,163.896 एकड़ थी। चौंकाने वाली बात यह है कि 2013 के बाद वक्फ भूमि में 20,92,072.536 एकड़ की वृद्धि हुई।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि विधायी शासन को प्रतिस्थापित करना, विधायिका द्वारा अधिनियमित किया जाना अस्वीकार्य है। वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 वैध है। यह विधायी शक्ति का वैध प्रयोग है। संसद ने अपने अधिकार क्षेत्र में काम करते हुए यह सुनिश्चित किया कि वक्फ जैसे धार्मिक बंदोबस्तों का प्रबंधन किया जाए और उसमें विश्वास बनाए रखा जाए।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि जब वैधता का अनुमान लगाया जाता है तो प्रतिकूल परिणामों के बारे में जाने बिना पूरी तरह से रोक लगा दी जाती है। वक्फ कानून की वैधता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं का प्रयास न्यायिक समीक्षा के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
इससे पहले 17 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई की थी। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ से केंद्र की मांग पर सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए सात दिन का समय दिया था। सरकार ने आश्वासन दिया था कि अगली सुनवाई तक 'उपयोगकर्ता की ओर से वक्फ' या 'दस्तावेजों की ओर से वक्फ' संपत्तियों को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाएगा। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि यदि किसी वक्फ संपत्ति का पंजीकरण 1995 के अधिनियम के तहत हुआ है, तो उन संपत्तियों को 5 मई को अगली सुनवाई तक गैर-अधिसूचित नहीं किया जा सकता।
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