किशोरियों को इच्छाओं पर नियंत्रण रखने की सलाह वाला HC का फैसला रद्द; जजों पर सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी

कलकत्ता हाईकोर्ट ने पिछले साल 18 अक्तूबर को फैसले में एक व्यक्ति को बरी करते हुए कहा था कि दोनों का रोमांटिक संबंध था। हाईकोर्ट ने युवा लड़कियों और लड़कों को अपनी यौन इच्छाओं पर लगाम लगाने की सलाह दी थी। शीर्ष अदालत ने फैसले में कहा, निर्णय में अप्रासंगिक और अनावश्यक सामग्री नहीं हो सकती।

Aug 21, 2024 - 04:00
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किशोरियों को इच्छाओं पर नियंत्रण रखने की सलाह वाला HC का फैसला रद्द; जजों पर सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी

नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायाधीशों का काम मामले में फैसला सुनाना है न कि उपदेश देना। शीर्ष अदालत ने किशोरियों को यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखने की सलाह देने वाला कलकत्ता हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की के यौन उत्पीड़न के मामले में एक व्यक्ति को इसलिए बरी कर दिया था क्योंकि लड़की ने उससे शादी की थी। शीर्ष अदालत ने आरोपी की सजा बहाल कर दी।

जस्टिस अभय एस ओका व जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने हाईकोर्ट की टिप्पणियों पर असहमति जताते हुए उसे खारिज कर दिया। पीठ ने कहा, अदालत के निर्णय में विभिन्न विषयों पर जजों की व्यक्तिगत राय नहीं हो सकती। जज को निर्णय करना होता है न कि उपदेश देना। पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए ट्रायल कोर्ट के भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 और पॉक्सो की धारा 6 के तहत दोषसिद्धि को बहाल कर दिया। साथ ही आरोपी की सजा बहाल कर दी।

पीठ ने कहा, निर्णय न तो कोई थीसिस है और न ही साहित्य का कोई अंश। हाईकोर्ट के निर्णय में न्यायाधीश की युवा पीढ़ी को सलाह और विधायिका को सलाह की व्यक्तिगत राय शामिल है। हाईकोर्ट की टिप्पणियां पूरी तरह अप्रासंगिक हैं। अपील में दोषसिद्धि के आदेश पर विचार करते समय न्यायालयों के निर्णय में तथ्यों का संक्षिप्त विवरण, अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष की ओर से प्रस्तुत साक्ष्य की प्रकृति ( यदि कोई हो), पक्षों द्वारा प्रस्तुत किए गए निवेदन, साक्ष्य के पुनर्मूल्यांकन पर आधारित विश्लेषण और अभियुक्त के अपराध की पुष्टि करने या अभियुक्त को दोषमुक्त करने के कारण होने चाहिए।

कलकत्ता हाईकोर्ट ने पिछले साल 18 अक्तूबर को फैसले में एक व्यक्ति को बरी करते हुए कहा था कि दोनों का रोमांटिक संबंध था। हाईकोर्ट ने युवा लड़कियों और लड़कों को अपनी यौन इच्छाओं पर लगाम लगाने की सलाह दी थी। शीर्ष अदालत ने फैसले में कहा, निर्णय में अप्रासंगिक और अनावश्यक सामग्री नहीं हो सकती।

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