काशी में हरिश्चंद्र घाट पर शिव के गणों ने खेली चिता भस्म की होली
काशी के महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट पर फाल्गुन शुक्ल एकादशी के अवसर पर मसाने की होली का अनूठा आयोजन किया गया। इस पारंपरिक उत्सव में अघोरी साधकों, नागा संन्यासियों, किन्नर समुदाय और अन्य शिव भक्तों ने चिता भस्म से होली खेली। यह आयोजन भगवान शिव की भूतभावन स्वरूप की आराधना का प्रतीक माना जाता है, जिसमें उनके गण – भूत-पिशाच, यक्ष, गंधर्व और साधु-संत – चिता की भस्म को शिव प्रसाद मानकर स्वीकार करते हैं।

वाराणसी (आरएनआई) काशी के महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट पर फाल्गुन शुक्ल एकादशी के अवसर पर मसाने की होली का अनूठा आयोजन किया गया। इस पारंपरिक उत्सव में अघोरी साधकों, नागा संन्यासियों, किन्नर समुदाय और अन्य शिव भक्तों ने चिता भस्म से होली खेली। यह आयोजन भगवान शिव की भूतभावन स्वरूप की आराधना का प्रतीक माना जाता है, जिसमें उनके गण – भूत-पिशाच, यक्ष, गंधर्व और साधु-संत – चिता की भस्म को शिव प्रसाद मानकर स्वीकार करते हैं।
इस अवसर पर अघोरपीठ से जुड़े संन्यासियों ने भगवान मसाननाथ की विशेष पूजा-अर्चना की और भगवान दत्तात्रेय की आराधना चिता भस्म से की। भक्तों ने चिता भस्म को अपने मस्तक पर धारण कर शिव की अनंत लीला में सहभागिता निभाई। शिव पुराण में वर्णित शिव तांडव और महाश्मशान काशी की इस अद्भुत परंपरा को देखने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु घाट पर उपस्थित रहे।
हालांकि, मसाने की होली को लेकर कुछ समूहों ने आपत्ति जताई और इसे अनुचित परंपरा करार दिया। इस पर अघोरपीठ हरिश्चंद्र घाट के पीठाधीश्वर अवधूत कपाली बाबा ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वह लगभग चार दशकों से इस परंपरा को नागा सन्यासियों, अघोर साधकों, अन्य संन्यासी परंपराओं के संतों और किन्नर समुदाय के साथ निभाते आ रहे हैं और यह काशी की आध्यात्मिक संस्कृति का एक अहम हिस्सा है।
कपाली बाबा ने स्पष्ट किया कि भगवान शिव समस्त वर्जनाओं से मुक्त हैं, और उनका प्रमुख श्रृंगार चिता भस्म है। महाश्मशान शिव के आनंदमय स्वरूप का प्रतीक है, इसलिए यहां चिता भस्म की होली खेलना पूरी तरह से धार्मिक और आध्यात्मिक परंपरा के अनुरूप है। उन्होंने यह भी कहा कि काशी को 'उत्सवधाम' कहा जाता है, जहां मृत्यु को भी उत्सव के रूप में देखा जाता है, और मसाने की होली इसी भावना को व्यक्त करती है।
उन्होंने इस परंपरा की तुलना अन्य स्थानों की विशेष होलियों से करते हुए कहा, "जैसे बरसाने की लट्ठमार होली, ब्रज की लड्डुओं की होली और उदयपुर के एकलिंगजी की मंवाड़ी होली प्रसिद्ध हैं, वैसे ही काशी की मसाने की होली भी एक विशेष धार्मिक परंपरा है। इसे अधार्मिक बताना गलत है।"
कपाली बाबा ने इस आयोजन में किसी भी प्रकार की असामाजिक गतिविधि या नशे को बढ़ावा देने के आरोपों को भी निराधार बताया और कहा कि यह शिव भक्ति का एक पवित्र रूप है, जिसे गलत नजरिए से देखना उचित नहीं। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे इस परंपरा की आध्यात्मिकता को समझें और इसकी महिमा को नकारात्मक रूप में प्रस्तुत करने से बचें।
"यह आयोजन शिव की अनंत लीला का हिस्सा है, इसे विकृत नजरिए से देखना उचित नहीं," उन्होंने कहा।
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