उप्र के हरदोई जिले से हुई होलीकोत्सव की शुरुआत

Mar 23, 2024 - 17:18
Mar 23, 2024 - 17:18
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उप्र के हरदोई जिले से हुई होलीकोत्सव की शुरुआत

हरदोई (आरएनआई) उत्तर प्रदेश का जनपद हरदोई अपने में तमाम राजनैतिक व धार्मिक इतिहास संजोए हुए है। कहा जाता है कि यहां भगवान बिष्णु ने दो बार अवतार लिया है।एक बार भगवान वामन के रूप में दूसरा नरसिंह भगवान के रूप में अवतार लिया है। होली जैसे पवित्र त्योहार जिसे देश विदेश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है इसका शुभारंभ हरदोई से होना माना जाता रहा है।होली का इतिहास विभिन्न किंवदंतियों और कहानियों के साथ हिंदू पौराणिक कथाओं और परंपरा में गहराई से निहित है। इन सबके बीच, होली से जुड़ी सबसे लोकप्रिय किंवदंतियाँ होलिका और प्रह्लाद की कहानियाँ हैं। होली अलाव या होलिका दहन हिंदू पौराणिक कथाओं से होलिका और प्रह्लाद की कहानी पर आधारित एक उत्सव है। इस उत्सव को लेकर विद्वानों का एक मत नहीं है । कोई इसको एमपी राज्य  के एरच मानते हैं तो कोई मुल्तान  शहर को मानते हैं लेकिन हरदोई इन सब में ज्यादा सत्य की करीब है । हरदोई इससे पहले हरिद्रोही  हिरण्यकश्यप की राजधानी हुआ करती थी। प्रहलाद कुण्ड व हिरण्यकश्यप का किला जो कि टीलेनुमा खंडहर में तब्दील हो गया है।इसकी प्रमाणिकता साबित कर रहे हैं।

इस कथा के अनुसार हिरण्यकशिपु नाम का एक राक्षस राजा था। दैत्यों के राजा ने भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया। उनका कहना है कि अमरता का वरदान यह है कि वह न तो दिन में मरेंगे और न ही रात में। न तो मनुष्य और न ही जानवर उसे मार सकेंगे। यह वरदान प्राप्त करने के बाद, हिरण्यकश्यप बहुत अहंकारी हो गया और उसने सभी से उसे भगवान के रूप में पूजा करने की मांग की। लेकिन उसके प्रह्लाद का जन्म इसी राक्षस राजा के घर हुआ था। वह अपने पिता के बजाय भगवान विंशु के प्रति समर्पित थे। राजा हिरण्यकश्यप को उसकी भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति पसंद नहीं थी। हिरण्यकश्यप ने उसे मरवाने के कई प्रयास किये। फिर भी प्रह्लाद बच गया। अपने बेटे को दंडित करने के लिए, हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका से मदद मांगी, जो आग से प्रतिरक्षित थी। उनके पास एक चुनरी है, जिसे पहनकर वह आग के बीच बैठ सकती हैं। जिसे ढकने से आग का कोई असर नहीं होता। हिरण्यकश्यप और होलिका ने प्रह्लाद को जिंदा जलाने की योजना बनाई। होलिका ने धोखे से प्रह्लाद को अपने साथ आग में बैठा लिया। लेकिन दैवीय हस्तक्षेप के माध्यम से, प्रह्लाद को भगवान विष्णु ने बचा लिया और होलिका उस आग में जल गई। होलिका प्रह्लाद को वही चुनरी ओढ़कर गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई, लेकिन भगवान की माया का असर यह हुआ कि हवा चली और चुनरी होलिका के ऊपर से उड़कर प्रह्लाद पर जा गिरी। इस प्रकार प्रह्लाद फिर बच गया और होलिका जल गयी। इसके तुरंत बाद भगवान विष्णु ने नरसिह का अवतार लिया और गौधुली बेला यानी न दिन और न रात में अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का वध कर दिया। तब से लेकर  हरदोई में ही नहीं बल्कि पूरे देश में होली से एक दिन पहले होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है. यह पूरी कहानी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यही कारण है कि होली से एक दिन पहले होलिका दहन मनाया जाता है। होलिका दहन पर लोग अपनी नकारात्मकता जलाते हैं।

होली से जुड़ी एक और लोकप्रिय कहानी भगवान कृष्ण और राधा के बारे में है। होली कृष्ण और राधा के बारे में एक चंचल प्रेम कहानी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण जो अपने शरारती स्वभाव के लिए प्रसिद्ध थे, उन्होंने अपनी माँ से राधा के सुंदर रंग के विपरीत अपने गहरे रंग के बारे में शिकायत की थी। जवाब में, उनकी मां ने सुझाव दिया कि वह राधा के चेहरे को अपने रंग से मेल खाते हुए रंग दें। राधा के चेहरे को रंग से रंगने की यह चंचल क्रिया अंततः रंग और पानी से खेलने की परंपरा बन गई। लोग होली खेलते हैं और अपने प्रियजनों को रंग लगाते हैं जो प्यार, दोस्ती और वसंत के आगमन का प्रतीक है।

होली की जड़ें प्राचीन भारतीय रीति-रिवाजों और कृषि पद्धतियों में हैं। यह प्रजनन उत्सव, वसंत के आगमन और नए जीवन के खिलने का जश्न मनाने के लिए भी माना जाता है। होली पर, किसान स्वस्थ फसल के लिए अपने शिकार को भगवान को समर्पित करते हैं और अपनी भूमि की उर्वरता सुनिश्चित करने के लिए अनुष्ठान करते हैं। रंग और पानी के साथ होली का उत्सव वसंत के रंगीन खिलने और प्रकृति में जीवन के नवीनीकरण का भी प्रतिनिधित्व करता है होली एकता और एकजुटता का सार्वभौमिक उत्सव बन गईं। यह अब एक विश्व प्रसिद्ध त्योहार है। यह भारत के साथ-साथ दुनिया के कई हिस्सों में भी बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। होली का त्योहार रंग, संगीत, स्वादिष्ट मिठाइयों, चंचल वातावरण से भरा होता है

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Laxmi Kant Pathak Senior Journalist | State Secretary, U.P. Working Journalists Union (Regd.)