इस साल इतिहास में सबसे गर्म रहा जून, लगातार 12वें महीने टूटी वैश्विक तापमान में 1.5°C बढ़ोतरी की सीमा
दुनिया बड़े पैमाने पर जलवायु परिवर्तन के संकट को टालने के लिए विशेषज्ञों द्वारा निर्धारित 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार करने के कगार पर खड़ी है।
वॉशिंगटन (आरएनआई) जलवायु परिवर्तन का असर पूरी दुनिया पर पड़ता दिखाई दे रहा है। कहीं गर्मी तो कहीं बारिश का तांडव देखा जा सकता है। तापमान ने तो सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। इस गर्मी में भारत में अब तक 50 डिग्री के पार जा चुका है। इस बीच, यूरोपीय संघ (ईयू) की जलवायु एजेंसी कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) ने बताया कि पिछले महीने पांच महाद्वीपों में लाखों लोगों को चिलचिलाती गर्मी का सामना करना पड़ा। साथ ही इस बात की पुष्टि की कि जून अब तक का सबसे गर्म महीना था।
दुनिया बड़े पैमाने पर जलवायु परिवर्तन के संकट को टालने के लिए विशेषज्ञों द्वारा निर्धारित 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार करने के कगार पर खड़ी है। जून इस तय सीमा के करीब पहुंचने का लगातार 12वां महीना है। सी3एस के वैज्ञानिकों के मुताबिक, पिछले साल जून के बाद से हर महीना रिकॉर्ड पर सबसे गर्म महीना रहा है।
गौरतलब है, इस साल जनवरी में बढ़ता तापमान औद्योगिक काल (1850 से 1900) से पहले की तुलना में 1.66 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा था, जो इसे अब तक की सबसे गर्म जनवरी बनाता है। बता दें कि कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस यूरोपियन यूनियन के अर्थ ऑब्जरवेशन प्रोग्राम का हिस्सा है। जनवरी 2024 के दौरान सतह के पास हवा का औसत वैश्विक तापमान 13.14 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया था, जो 1991 से 2020 के दरमियान जनवरी माह में दर्ज औसत तापमान से करीब 0.7 डिग्री सेल्सियस ज्यादा है।
2015 में हुए पेरिस जलवायु समझौते के तहत वैश्विक औसत तापमान को दो डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने देने का लक्ष्य रखा गया था और कहा गया था कि इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस पार नहीं होने दिया जाएगा। हालांकि, बढ़ते कार्बन उत्सर्जन और वैश्विक तापमान से यह लक्ष्य पार होते दिख रहा है।
वैज्ञानिकों ने कहा कि यदि लोगों की बड़ी आबादी को भारी नुकसान से बचाना है, तो उचित सीमा एक डिग्री सेल्सियस या उससे नीचे निर्धारित की जानी चाहिए। हालांकि, इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि पृथ्वी का तापमान 150 साल पहले की तुलना में 1.2 डिग्री सेल्सियस पहले ही बढ़ चुका है।
नए आंकड़ों के अनुसार, जून 2024 अब तक का सबसे गर्म महीना रहा, जिसमें सतह का औसत तापमान 16.66 डिग्री सेल्सियस रहा, जो 1991-2020 के औसत तापमान से 0.67 डिग्री सेल्सियस अधिक तथा जून 2023 में दर्ज पिछले उच्चतम तापमान से 0.14 डिग्री सेल्सियस अधिक है। यूरोपीय जलवायु एजेंसी ने कहा कि पिछले 12 महीनों (जुलाई 2023-जून 2024) के लिए वैश्विक औसत तापमान रिकॉर्ड पर सबसे अधिक है, जो 1991-2020 के औसत से 0.76 डिग्री सेल्सियस अधिक और 1850-1900 के पूर्व-औद्योगिक औसत से 1.64 डिग्री सेल्सियस अधिक है। जून में दुनिया की समुद्री सतह भी इस महीने के लिए अब तक का सबसे अधिक दर्ज किया गया।
जून में कई देशों ने रिकॉर्ड तोड़ गर्मी, विनाशकारी बाढ़ और तूफान का सामना किया। क्लाइमेट सेंट्रल के विश्लेषण के अनुसार, दुनिया की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी ने 16-24 जून के दौरान अत्यधिक गर्मी का सामना किया, जो जलवायु परिवर्तन के कारण कम से कम तीन गुना अधिक था।
किस देश में कितने लोग गर्मी से प्रभावित -
देश आबादी
भारत 61.9 करोड़
चीन 57.9 करोड़
इंडोनेशिया 23.1 करोड़
नाइजीरिया 20.6 करोड़
ब्राजील 17.6 करोड़
बांग्लादेश 17.1 करोड़
अमेरिका 16.5 करोड़
यूरोप में 15.2 करोड़
मैक्सिको 12.3 करोड़
इथियोपिया 12.1 करोड़
मिस्र 10.3 करोड़
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार, उत्तर-पश्चिम भारत में 1901 के बाद से जून सबसे गर्म दर्ज किया गया। देश में इस साल सबसे भीषण गर्मी का अनुभव किया है। यहां 40 हजार से अधिक हीट स्ट्रोक के मामले और 100 से अधिक गर्मी से संबंधित मौतें दर्ज की गई हैं। भीषण गर्मी ने जल आपूर्ति प्रणाली और पावर ग्रिड को फेल कर दिया, जबकि दिल्ली गंभीर जल संकट से जूझ रही है।
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