इसरो जासूसी: चार व्यक्तियों को अग्रिम जमानत प्रदान करने का आदेश शीर्ष अदालत ने किया रद्द
उच्चतम न्यायालय ने 1994 के भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) जासूसी मामले में वैज्ञानिक नंबी नारायणन को कथित रूप से फंसाने के एक मामले में एक पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) सहित चार व्यक्तियों को अग्रिम जमानत प्रदान करने के केरल उच्च न्यायालय के आदेश को शुक्रवार को रद्द कर दिया।
नयी दिल्ली, 2 दिसंबर 2022, (आरएनआई)। उच्चतम न्यायालय ने 1994 के भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) जासूसी मामले में वैज्ञानिक नंबी नारायणन को कथित रूप से फंसाने के एक मामले में एक पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) सहित चार व्यक्तियों को अग्रिम जमानत प्रदान करने के केरल उच्च न्यायालय के आदेश को शुक्रवार को रद्द कर दिया।
न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने मामले को उच्च न्यायालय को वापस भेज दिया और उसे इस मुद्दे पर चार सप्ताह के भीतर फैसला करने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा, ‘‘ये सभी अपीलें स्वीकार की जाती हैं। उच्च न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत प्रदान करने वाला आदेश रद्द किया जाता है। सभी मामलों को उच्च न्यायालय को वापस भेजा जाता है ताकि वह उनके गुणदोष के आधार पर नए सिरे से फैसला कर सके। इस अदालत ने किसी भी पक्ष के लिए गुणदोष पर कोई टिप्पणी नहीं की है।
पीठ ने कहा, ‘‘अंतत: उच्च न्यायालय को आदेश पारित करना है। हम उच्च न्यायालय से अनुरोध करते हैं कि वह अग्रिम जमानत याचिकाओं पर जल्द, अच्छा हो कि इस आदेश की तारीख से चार सप्ताह के भीतर फैसला करे।’’
शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री को जमानत याचिकाओं को आज से एक सप्ताह के भीतर संबंधित पीठ के समक्ष अधिसूचित करने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘तब तक एक अंतरिम व्यवस्था के तहत और अधिकारों के प्रति पूर्वाग्रह के बिना, यह निर्देश दिया जाता है कि पांच सप्ताह की अवधि के लिए और उच्च न्यायालय द्वारा जमानत अर्जियों पर अंतिम फैसला किए जाने तक प्रतिवादियों को गिरफ्तार नहीं किया जाए, जो कि जांच में सहयोग के अधीन होगा।’’
यह फैसला गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) आर बी श्रीकुमार, केरल के दो पूर्व पुलिस अधिकारियों एस विजयन और टी. एस. दुर्गा दत्त और एक सेवानिवृत्त खुफिया अधिकारी पी एस जयप्रकाश को जमानत देने के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की अपील पर आया।
श्रीकुमार उस समय गुप्तचर ब्यूरो (आईबी) के उप निदेशक थे।
शीर्ष अदालत ने इस मामले में दायर सीबीआई की याचिका पर पिछले साल नवंबर में नोटिस जारी किया था।
जांच एजेंसी ने कहा था कि उसकी जांच में यह बात सामने आयी कि कुछ वैज्ञानिकों को इस मामले में प्रताड़ित किया गया और फंसाया गया, जिसकी वजह से क्रायोजेनिक इंजन का विकास प्रभावित हुआ तथा भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम लगभग एक या दो दशक पीछे चला गया।
सीबीआई ने पहले आरोप लगाया था कि इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि आरोपी उस टीम का हिस्सा थे, जिसका मकसद क्रायोजेनिक इंजन के निर्माण के लिए इसरो के प्रयासों को बाधित करना था।
उच्च न्यायालय ने पिछले साल 13 अगस्त को इन चार आरोपियों को अग्रिम जमानत देते हुए कहा था, ‘‘क्रायोजेनिक इंजन के विकास के संबंध में इसरो की गतिविधियों को बाधित करने के इरादे से, इसरो के वैज्ञानिकों को झूठा फंसाने की साजिश रचने के लिए प्रेरित करने के संबंध में याचिकाकर्ताओं के किसी विदेशी शक्ति से प्रभावित होने के बारे में अंश मात्र भी सबूत नहीं है ।’’
इसने कहा था कि जब तक उनकी संलिप्तता के संबंध में विशिष्ट सबूत न हो, प्रथम दृष्टया यह नहीं कहा जा सकता कि वे देश के हितों के खिलाफ काम कर रहे थे।
सीबीआई ने जासूसी मामले में इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन की गिरफ्तारी और हिरासत के संबंध में आपराधिक साजिश सहित विभिन्न कथित अपराधों के लिए 18 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है।
वर्ष 1994 में सुर्खियों में रहा यह मामला दो वैज्ञानिकों और मालदीव की दो महिलाओं सहित चार अन्य लोगों द्वारा भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम से जुड़े कुछ गोपनीय दस्तावेज विदेशों को सौंपने के आरोपों से संबंधित है।
नारायणन को सीबीआई द्वारा क्लीन चिट दी गई थी। नारायणन ने पहले आरोप लगाया था कि केरल पुलिस ने मामले को ‘‘गढ़ा’’ था और 1994 में उन पर जिस तकनीक की चोरी करने और बेचने का आरोप लगाया गया था, वह उस समय मौजूद ही नहीं थी।
सीबीआई ने कहा था कि केरल में तत्कालीन शीर्ष पुलिस अधिकारी नारायणन की अवैध गिरफ्तारी के लिए जिम्मेदार थे।
शीर्ष अदालत ने 14 सितंबर, 2018 को तीन सदस्यीय समिति नियुक्त की थी और केरल सरकार को निर्देश दिया था कि वह नारायणन के सम्मान को पहुंची क्षति को लेकर 50 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान करे।
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