इन्सानी शोर से झींगुरों के अस्तित्व पर संकट
कभी शाम ढलते ही वातावरण में कीटों की आवाज गूंजा करती थी, लेकिन बढ़ते इन्सानी शोर में यह आवाज कहीं दब सी गई है। अब इन झींगुरों ने आपस में संवाद करना बहुत कम कर दिया है। वातावरण में बढ़ते शोर की वजह से इस नन्हें जीव के प्रजनन और पैदा होने वाली संतानों पर असर पड़ रहा है।
नई दिल्ली (आरएनआई) बढ़ता इन्सानी और मशीनी शोर झींगुरों के अस्तित्व के लिए खतरा बनता जा रहा है। कभी शाम ढलते ही वातावरण में कीटों की आवाज गूंजा करती थी, लेकिन बढ़ते इन्सानी शोर में यह आवाज कहीं दब सी गई है। अब इन झींगुरों ने आपस में संवाद करना बहुत कम कर दिया है। वातावरण में बढ़ते शोर की वजह से इस नन्हें जीव के प्रजनन और पैदा होने वाली संतानों पर असर पड़ रहा है। डेनवर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने झींगुरों पर इन्सानी शोर के बढ़ते प्रभावों का अध्ययन किया है। तीन वर्षों तक चले इस अध्ययन के नतीजे जर्नल बीएमसी इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित हुए हैं। झींगुर की 900 प्रजातियों में से 100 अमेरिका में रहती हैं।
अध्ययन में दिखा कि शोर के एक निर्धारित स्तर के बाद झींगुरों के वयस्क होने तक जीवित रहने की संभावना कम हो गई थी। इसके साथ ही मादा झींगुर कितने बच्चे पैदा करती है यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि उसने किशोरावस्था से वयस्क होने के बीच शोर के किस स्तर का सामना किया था। शोधकर्ताओं का कहना है कि आपस में संवाद के लिए ध्वनि पर निर्भर रहने वाले कीट, बढ़ते ध्वनि प्रदूषण से प्रभावित हो रहे हैं। यही वजह है कि उन्होंने झींगुरों का अध्ययन किया है। ये आमतौर पर शहरों में या उसके आसपास के क्षेत्रों में रहते हैं, जहां ये आसानी से यातायात की वजह से होने वाले शोर के संपर्क में आ जाते हैं। अब धीरे-धीरे यह शोर कस्बों और गांवों तक पहुंच रहा है।
इन्सानी गतिविधियां इन नन्हें जीवों के विनाश की वजह बन रही हैं। पृथ्वी सिर्फ हमारा ही घर नहीं है। ये नन्हें जीव भी धरती का अभिन्न हिस्सा हैं, जिनके बिना जीवन के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती। इससे पहले बहुत देर हो जाए इन जीवों के संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों को बढ़ावा देना जरूरी है।
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