आवास विकास पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, ध्वस्त होंगे अवैध निर्माण!
सुप्रीम कोर्ट ने शास्त्रीनगर के सेंट्रल मार्केट में सभी अवैध निर्माणों को ध्वस्त करने का आदेश दिया है। व्यापारियों को तीन महीने में परिसर खाली करने का समय दिया गया है।
मेरठ (आरएनआई) शास्त्रीनगर स्थित सेंट्रल मार्केट के व्यापारियों को सुप्रीम कोर्ट ने तगड़ा झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में आवासीय क्षेत्र में भू-उपयोग परिवर्तन कर हुए सभी अवैध निर्माणों को ध्वस्त करने के आदेश दिए हैं। इसके लिए भवन स्वामियों को परिसर खाली करने के लिए तीन महीने का समय दिया जाएगा। इसके 2 सप्ताह बाद आवास एवं विकास परिषद को अवैध निर्माणों को ध्वस्त करना होगा। इस कार्य में सभी प्राधिकारी सहयोग करेंगे अन्यथा कोर्ट की अवमानना के तहत कार्यवाही की जाएगी। कोर्ट ने इसके साथ ही आवास एवं विकास के उन सभी जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ भी आपराधिक एवं विभागीय कार्रवाई के आदेश दिए हैं जिनके कार्यकाल में ये सबकुछ होता रहा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश अभी तक साइट पर अपलोड नहीं हुआ है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2014 में दिए भूखंड 661/6 के अवैध निर्माण के ध्वस्तीकरण आदेश की पुष्टि की है। साथ ही आवासीय क्षेत्र में हुए व्यावसायिक निर्माण को ध्वस्त करने के आदेश दिए हैं।
1478 अवैध निर्माणों पर गिरेगी गाज
19 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखते हुए 499 भूखंडों के भू-उपयोग की स्टेटस रिपोर्ट आवास एवं विकास परिषद से मांगी थी। इसके बाद परिषद ने शास्त्रीनगर स्कीम-7 और स्कीम-3 में सर्वे करके कुल 1478 आवासीय भूखंडों की रिपोर्ट दी थी जिनमें भू-उपयोग परिवर्तन कर व्यावसायिक गतिविधि चल रही है।
1995 में आवास विकास ने दिए थे नोटिस
आवास विकास परिषद ने शास्त्रीनगर के व्यापारियों को 1995 में नोटिस दिए थे। उस समय व्यापारियों ने नोटिसों को दरकिनार कर दिया था। अगर उस समय नोटिस को गंभीरता से ले लिया जाता तो आज यह मामला नासूर न बनता।
सेंट्रल मार्केट के 661/6 प्लाट पर बनी जिन 24 दुकानों को गिराने के हाईकोर्ट ने आदेश किए थे ये प्लॉट आज भी आवास विकास परिषद के रिकॉर्ड में काजीपुर के वीर सिंह के नाम है, जबकि 1992 से लेकर 1995 तक इस प्लॉट में बनी तमाम दुकानों को व्यापारियों को बेंच दिया गया। व्यापारियों ने इस भवन को अपने नाम नहीं कराया। आवास विकास सिविल कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक वीर सिंह को ही प्रोपर्टी का मालिक मानते हुए पार्टी बनाती रही है। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ व्यापारियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिस पर स्टे मिल गया था। लेकिन 10 साल बाद 19 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मामले में आदेश सुरक्षित रखते हुए आवास विकास परिषद से 499 भवनों की स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी, जिसे तैयार करके परिषद ने कोर्ट में दाखिल कर दिया था।
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