'आरोपपत्र के बाद भी HC को मामले को रद्द करने का अधिकार', दहेज उत्पीड़न मामले में SC का आदेश
दहेज उत्पीड़न के एक मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरोपपत्र के बाद भी हाईकोर्ट को मामले को रद्द करने का अधिकार है। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने यह फैसला सुनाया है।
नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरोपपत्र दाखिल हो जाने पर भी हाईकोर्ट को आपराधिक मामले रद्द करने का अधिकार है। शीर्ष अदालत ने गुजरात हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें 2002 के दहेज उत्पीड़न मामले से संबंधित कार्यवाही समाप्त करने से इन्कार कर दिया गया था, जबकि दोनों पक्षों ने 2004 में आपसी सहमति से अपने वैवाहिक संबंध तोड़ लिए थे।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट के पास एफआईआर को रद्द करने का अधिकार है, भले ही धारा 173(2) के तहत आरोप पत्र दाखिल कर दिया गया हो। लेकिन शर्त यह है कि अन्य बातों के अलावा यह संतुष्टि हो जाए कि एफआईआर और आरोप पत्र को एक साथ पढ़ने पर भी खंडन के बिना अपराध का खुलासा नहीं हो। पीठ ने कहा, ऐसी एफआईआर से उत्पन्न कार्यवाही को जारी रखना, विशेष मामले की विशिष्ट परिस्थितियों को देखते हुए वास्तव में कानून की प्रक्रिया के साथ-साथ न्यायालय का भी दुरुपयोग होगा।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए अपीलकर्ता शैलेशभाई रणछोड़भाई पटेल और अन्य के खिलाफ एफआईआर, आरोप-पत्र और अन्य सभी कार्यवाही को रद्द कर दिया। गुजरात हाईकोर्ट ने 2005 में उनकी याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि आरोप-पत्र दाखिल किए जाने के मद्देनजर, अपीलकर्ताओं के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है, इसलिए एफआईआर को रद्द करने की आवश्यकता नहीं है।
शीर्ष न्यायालय ने मामले में यह भी नोट किया कि 2004 में तलाक के बाद शिकायतकर्ता महिला ने दोबारा शादी कर ली थी और उसके बच्चे भी हैं। उसका पूर्व पति भी विदेश में बस गया था। पीठ ने कहा, शिकायतकर्ता और अपीलकर्ता दोनों वर्तमान में भारत से बाहर रहते हैं और अपने-अपने जीवन में अच्छी तरह से व्यवस्थित हैं। शिकायतकर्ता का अपने वैवाहिक जीवन में व्यवधान उत्पन्न करने का कोई इरादा नहीं है, जो वर्तमान कार्यवाही में उसकी गैर-भागीदारी से भी स्पष्ट है। पीठ ने यह भी कहा कि इसके अलावा, एफआईआर में लगाए गए आरोप ज्यादातर अस्पष्ट और सामान्य प्रकृति के हैं।
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