आरसीपी पर जदयू का हमला, कहा- वे राजनीति के फ्यूज बल्ब, निराश होकर बनाई पार्टी

बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ तब आया जब जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कैबिनेट में पूर्व मंत्री रह चुके रामचंद्र प्रसाद सिंह (आरसीपी सिंह) ने अपने राजनीतिक सफर की नई शुरुआत की दीपावली के अवसर पर आरसीपी सिंह ने ‘आप सब की आवाज’ (आसा) नामक अपनी नई पार्टी का गठन करते हुए इसकी घोषणा की।

Nov 1, 2024 - 09:00
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आरसीपी पर जदयू का हमला, कहा- वे राजनीति के फ्यूज बल्ब, निराश होकर बनाई पार्टी

पटना (आरएनआई) बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ तब आया जब जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कैबिनेट में पूर्व मंत्री रह चुके रामचंद्र प्रसाद सिंह (आरसीपी सिंह) ने अपने राजनीतिक सफर की नई शुरुआत की दीपावली के अवसर पर आरसीपी सिंह ने ‘आप सब की आवाज’ (आसा) नामक अपनी नई पार्टी का गठन करते हुए इसकी घोषणा की। उनकी इस नई पार्टी ने राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है। इस घटनाक्रम पर जदयू की प्रतिक्रिया तीखी रही, जिसमें पार्टी प्रवक्ता अरविंद निषाद ने आरसीपी सिंह को ‘फ्यूज बल्ब’ करार देते हुए उन पर तंज कसा। यह बयान न केवल जदयू और आरसीपी सिंह के बीच संबंधों में खटास को दर्शाता है, बल्कि इससे यह भी साफ हो गया कि उनकी राह अब जदयू से पूरी तरह अलग हो चुकी है। जदयू के प्रवक्ता अरविंद निषाद ने आरसीपी सिंह पर कटाक्ष करते हुए कहा कि उनकी स्थिति अब एक ‘फ्यूज बल्ब’ जैसी हो गई है। अरविंद ने टिप्पणी की कि दिवाली के अवसर पर कोई भी अपने घर में फ्यूज बल्ब नहीं लगाता, बल्कि नया बल्ब लगाता है, जो शुभ माना जाता है। इस तंज के माध्यम से जदयू ने संकेत दिया कि आरसीपी सिंह अब अप्रासंगिक हो चुके हैं और उनकी नई पार्टी का राज्य की राजनीति में कोई विशेष प्रभाव नहीं होगा। जदयू की इस तीखी प्रतिक्रिया से यह स्पष्ट होता है कि पार्टी आरसीपी सिंह की नई पार्टी को किसी भी प्रकार का खतरा नहीं मान रही है। आरसीपी सिंह कभी जदयू में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सबसे करीबी माने जाते थे। जदयू के शीर्ष पदों पर रहने के साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार में मंत्री के रूप में भी भूमिका निभाई। लेकिन पिछले कुछ समय से आरसीपी सिंह और नीतीश कुमार के बीच मतभेद बढ़ते गए, जिसके चलते आरसीपी सिंह ने जदयू से दूरी बना ली। अंततः उन्होंने बीजेपी से भी अलग होकर अपनी खुद की पार्टी बनाने का निर्णय लिया। यह राजनीतिक कदम राज्य में उनके भविष्य की संभावनाओं और स्वतंत्र पहचान को स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण है। ‘आप सब की आवाज’ (आसा) नामक पार्टी के गठन के साथ ही आरसीपी सिंह ने अपने राजनीतिक दृष्टिकोण और लक्ष्यों की झलक दी। पटना में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने पार्टी का नाम, उद्देश्य, और झंडे के रंगों का भी परिचय दिया। ‘आसा’ का उद्देश्य आम जनता की आवाज को बुलंद करना और उनके मुद्दों को राजनीति के केंद्र में लाना है। पार्टी के झंडे में तीन रंग होंगे – ऊपर हरा, बीच में पीला और नीचे नीला। बीच की पट्टी पर चुनाव आयोग द्वारा दिया गया चुनाव चिन्ह प्रिंट किया जाएगा। इस झंडे का डिजाइन सामाजिक और राजनीतिक संतुलन का प्रतीक माना जा रहा है। आरसीपी सिंह ने स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में पूरे जोश के साथ उतरेगी। उन्होंने बताया कि उनकी पार्टी ने अभी से 140 सीटों के लिए उम्मीदवारों का चयन कर लिया है और वे पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में उतरने के लिए तैयार हैं। आरसीपी सिंह की यह योजना एक मजबूत राजनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाती है। उनका कहना है कि उनकी पार्टी राज्य की राजनीति में एक नई सोच और दिशा देने का काम करेगी। आरसीपी सिंह की नई पार्टी ‘आसा’ के गठन से बिहार की राजनीति में बदलाव की उम्मीद है, लेकिन उनकी सफलता कई कारकों पर निर्भर करेगी। जदयू का यह मानना है कि आरसीपी सिंह की नई पार्टी को जनता का व्यापक समर्थन नहीं मिलेगा। वहीं, दूसरी ओर, आरसीपी सिंह का विश्वास है कि वे राज्य के मतदाताओं का समर्थन हासिल करने में सक्षम होंगे। बिहार की राजनीति में जहां जातिगत समीकरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, वहां आरसीपी सिंह की ‘आसा’ पार्टी को कैसे स्थान मिलेगा, यह देखना दिलचस्प होगा। आरसीपी सिंह द्वारा नई पार्टी ‘आसा’ का गठन करना बिहार की राजनीति में एक नई दिशा का प्रतीक है। जदयू के कटाक्षों के बावजूद, आरसीपी सिंह का यह कदम एक राजनीतिक साहस और स्वतंत्रता की दिशा में बड़ा प्रयास है। ‘फ्यूज बल्ब’ कहे जाने वाले इस नेता ने अपनी पार्टी के माध्यम से यह साबित करने की ठानी है कि उनकी राजनीतिक यात्रा में अभी भी काफी संभावनाएं हैं। आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आरसीपी सिंह की ‘आसा’ पार्टी बिहार के मतदाताओं में कितना प्रभाव डालती है और राज्य की राजनीति में क्या बदलाव लाने में सफल होती है।

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