आयोजित नवें वर्ष राजकीय क्रीडा स्थल रामलीला मैदान खिरनी बाग में
आयोजित नवें वर्ष राजकीय क्रीडा स्थल
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शाहजहांपुर। (आरएनआई) आदर्श दिव्यांग कल्याण संतान द्वारा आयोजित नवें वर्ष राजकीय क्रीडा स्थल रामलीला मैदान खिरनी बाग में आज व्यास पीठ का पूजन राहुल गुप्ता एवं उनकी धर्मपत्नी सोनिया गुप्ता से आचार्य विवेकानंद शास्त्री ने कराकर कथा का शुभारंभ कराया आज की कथा में वृंदावन से पधारे श्रद्धा गौर दास जी महाराज ने भगवान शिव विवाह पर भक्त जनों को कथा सुनाई उन्होंने बताया माता पार्वती एवं भगवान शिव के विवाह पर सुंदर चित्रण करते हुए कहा की शिवजी जब बारात लेकर चलने लगे तो उनकी बारात में भूत-प्रेत,बेताल सब मगन होकर नाच रहे थे। भगवान शिव स्वयं नंदी पर विराजमान थे और गले में नाग की माला धारण किए हुए थे। साथ में भगवान विष्णु और ब्रह्माजी भी देवताओं की टोली लेकर चल रहे थे। त्रिलोक शिव विवाह के आनंद से मगन हो रहा था। हर तरफ शिवजी के जयकारे लग रहे थे। बारात नगर भ्रमण करते हुए देवी पार्वती के पिता राजा हिमवान के द्वार पहुंची।बारात के स्वागत के लिए महिलाएं आरती की थाली लेकर आयीं। भगवान शिव की सासु मां मैना अपने दामाद की आरती उतारने दरवाजे पर पहुंची। भगवान शिव की सामने जब मैना पहुंची तो शिवजी का रूप देखकर चकरा गईं। उस पर शिवजी ने अपनी और लीला दिखानी शुरू कर दी। शिवजी के नाग ने फुफकार मारना शुरू किया तेज हवा से मैने वस्त्र अस्त-व्यस्त होने लगे। मैना वहीं अचेत होकर गिर गईं। मैने को होश आया तो उन्होंने शिवजी के साथ अपनी सुकुमारी कन्या देवी पार्वती का विवाह करने से मना कर दिया। मैना ने कहा कि देवी पार्वती सुकुमारी को बाघंबरधारी, भस्मधारी मसानी को नहीं दे सकती। माता को व्याकुल देख पार्वती समझ गईं कि यह सब शिवलीला के कारण हो रहा है। देवी पार्वती ने कहा कि हे माता और पिताजी आप मुझे शिवजी से मिलने की आज्ञा दें फिर आपको शिव उसी रूप में मिलेंगे जैसा आप चाहते हैं।माता पिता से आज्ञा लेकर देवी पार्वती जनवासे में गईं जहां शिवजी विराजमान थे। देवी पार्वती भगवान शिव से बोली के हे प्रभु आप अपनी लीला समेटिए, मेरी माता आपका मसानी रूप देखकर व्याकुल हो रही हैं और आपसे मेरा विवाह नहीं करवाना चाहती हैं। हर माता की तरह उनकी भी इच्छा है कि उनका दामाद सुंदर और मनमोहक हो इसलिए आप अपने दिव्य रूप को प्रकट कीजिए। देवी पार्वती की मनोदशा समझकर शिवजी ने अपनी लीला समेट ली महाराज जी ने बताया भगवान विष्णु और चंद्रमा ने मिलकर भगवान शिव को दूल्हे के रूप में तैयार किया। भगवान शिव अपने चंद्रमौली रूप को धारण करके सबका मन मोह रहे थे।
देवी मैना ने जब शिवजी का चंद्रमौली रूप देखा तो निहारती रह गईं। उन्हें अपने नेत्रों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था। वह खुशी-खुशी शिवजी के विवाह की तैयारी करने लगीं। जब विवाह मंडप पर शिवजी पहुंचे और विवाह आरंभ होने वाला था तब साधु समाज लोकाचारवश राजा हिमवान की वंश परंपरा का बखान करने लगे। इसके बाद शिवजी से कहा गया कि उनकी वंश परंपरा क्या है इसका बखान कीजिए। शिवजी की ओर से कोई उनके वंश के बारे में बता ही नहीं रहा था। इस पर वहां स्थित समाज यह कहने लगा कि यह कैसा दूल्हा है जिसका कोई वंश ही नहीं है इनके माता-पिता का पता ही नहीं है। ऐसे में नारादजी वहां सभा में सभी को संबोधित करके शिवजी की वंश परंपरा के बारे में बताया।नरादजी ने कहा कि भगवान भोलेनाथ अजन्मा हैं। यह जगत के पिता हैं इनका कोई पिता नहीं है। ब्रह्मा और विष्णुजी को भी इन्होंने ही प्रकट किया है। इसलिए ब्रह्मा और विष्णुजी भी इनकी उत्पत्ति और वंश के बारे में बताने में सक्षम नहीं हैं। नारदजी के वचनों को सुनकर सभी जन समुदाय भोलेनाथ का जयजयकार करने लगे। फिर ब्रह्माजी पुरोहित बने और देवी पार्वती की ओर से भगवान विष्णु उनके भाई बने और शिवजी का विवाह संपन्न हुआ आज के आयोजन को सफल बनाने में मुख्य आयोजक हरि शरण बाजपेई सीमा बाजपेई आयोजन के अध्यक्ष दीपक शर्मा सतीश वर्मा ओम बाबू सर्राफ रेनू मिश्रा आराधना गुप्ता नलिनी गुप्ता आदि का सहयोग रहा।
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