आज अयोध्या से प्रधानमंत्री छोड़ेंगे चुनावी अश्वमेध का घोड़ा
प्राण प्रतिष्ठा से पहले पीएम के दक्षिण भारत में विभिन्न मंदिरों में पूजा-पाठ के अनुष्ठान को जब रामलला के जन्मभूमि पर बने मंदिर परिसर के निर्माण से जोड़कर देखते हैं तो मोदी की दक्षिण से अयोध्या की यात्रा बहुत कुछ कह देती है।
अयोध्या (आरएनआई) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा ही नहीं करेंगे, बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मुद्दों के रूप में चुनावी अश्वमेध का घोड़ा भी छोड़ेंगे, जो पूरे देश में घूम-घूमकर विरोधियों को चुनौती देगा।
यह काम सांस्कृतिक विरासत, गरीबों के कल्याण, सबका साथ-सबका विकास के संकेतों से आगे बढ़ता दिख सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि अयोध्या में मोदी के संबोधन से निकलने वाला मुद्दों के रूप में यह घोड़ा उत्तर से दक्षिण तक भाजपा की ऐतिहासिक विजय यात्रा के स्वप्न को साकार करता है या कोई सियासी सूरमा इसे रोकने में सफल हो जाता है। फिलहाल तो यह आसान नजर नहीं आता। प्राण प्रतिष्ठा को लेकर जिस तरह की तैयारियां दिख रही हैं, उसको देखते हुए इस अनुष्ठान के जरिये पीएम सरयू तट से सांस्कृतिक पुनर्जागरण का शंखनाद करते दिखें तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए। नजर जब अयोध्या में बने अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे का महर्षि वाल्मीकि के नाम पर नामकरण, रामलला के मंदिर परिसर में गणेश, हनुमान और जटायु की मूर्ति के साथ ऋषि अगस्त, विश्वामित्र, वशिष्ठ, वाल्मीकि, शबरी, निषादराज और अहिल्या के भी मंदिर बनवाने की योजना पर जाती है तो इन संभावनाओं को बल मिलता है। रामलला के मंदिर से उत्तर से लेकर दक्षिण को साधने की तैयारी समझ में आने लगती है।
प्राण प्रतिष्ठा से पहले पीएम मोदी का राममंदिर समेत गणेश, हनुमान, केवट, जटायु और शबरी पर डाक टिकट जारी करना राम के सहारे पूरे देश को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से जोड़ना भी लगता है। ऐसा लगता है कि पीएम ने इस बार राम के साथ सबको जोड़कर अस्मिता की राजनीति से जातिवाद एवं क्षेत्रवाद की सियासत को मात देने की तैयारी की है, जिसका संकेत वह किसी न किसी रूप में रामलला की धरती से जरूर देंगे। ताज्जुब नहीं पीएम अयोध्या की धरती से इस बार अस्मिता की राजनीति में हिंदुत्व से ऊपर भारतीयता के सरोकारों से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद साधते दिखें।
प्राण प्रतिष्ठा से पहले पीएम के दक्षिण भारत में विभिन्न मंदिरों में पूजा-पाठ के अनुष्ठान को जब रामलला के जन्मभूमि पर बने मंदिर परिसर के निर्माण से जोड़कर देखते हैं तो मोदी की दक्षिण से अयोध्या की यात्रा बहुत कुछ कह देती है। आखिर राम का राज्याभिषेक तो तभी हुआ था जब उन्होंने रावण वध के बाद दक्षिण से उत्तर की यात्रा की थी। राज्य सरकारों के विरोध को छोड़ दें तो प्राण प्रतिष्ठा के निमंत्रण पत्र और अक्षत वितरण करने वालों तथा अयोध्या की धरती से भेजे गए इन अक्षतों का केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में जिस तरह लोगों ने श्रद्धा भाव से स्वागत किया है वह भविष्य का संकेत देने को पर्याप्त है।
एक-आध छोटी-मोटी घटना को छोड़कर इस आयोजन से जुड़ाव को लेकर कुछ स्थानों पर मुस्लिम भी उत्साहित दिखे हैं । वह भी विपक्ष के लिए खतरे की घंटी सा ही है। भले ही इनकी संख्या कम हो, लेकिन यह तो संदेश है ही कि मुस्लिमों के बीच भी राम और मोदी का विरोध अब पहले जैसा नहीं है।
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