'अस्पताल से नवजात की तस्करी होने पर रद्द हो लाइसेंस', बच्चों के गायब होने के मामले में सुप्रीम कोर्ट सख्त
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तस्करी करके लाए गए बच्चे को उत्तर प्रदेश के दंपती को सौंपने को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई की। मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपियों को अग्रिम जमानत दे दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों की जमानत रद्द की और मामले की गंभीरता न समझने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट और उत्तर प्रदेश सरकार दोनों को फटकार लगाई।

नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बाल तस्करी को लेकर सख्त आदेश जारी किया। कोर्ट ने कहा कि अगर अस्पताल से नवजात गायब होते हैं तो अस्पताल का लाइसेंस रद्द कर दिया जाए। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सभी निचली अदालतों को बाल तस्करी से जुड़े मामलों की सुनवाई छह महीने में पूरी करने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने बाल तस्करी के मामलों से निपटने के तरीके को लेकर भी उत्तर प्रदेश सरकार की आलोचना की। ऐसे अपराध रोकने के लिए राज्यों को सख्त दिशा-निर्देश दिए। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि देशभर के हाईकोर्ट में बाल तस्करी के कितने मामले लंबित हैं, इसकी जानकारी दी जाए। इसके बाद छह महीने में मुकदमे को पूरा करने और दिन-प्रतिदिन सुनवाई करने के निर्देश जारी किए जाएंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने बाल तस्करी के मामलों से निपटने के लिए सख्त निर्देश जारी किए। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई नवजात शिशु चोरी होता है तो अस्पतालों का लाइसेंस रद्द कर दिया जाना चाहिए। यदि कोई महिला अस्पताल में बच्चे को जन्म देने आती है और बच्चा चोरी हो जाता है, तो पहला कदम लाइसेंस निलंबित करना होना चाहिए। पीठ ने चेतावनी दी कि किसी भी प्रकार की लापरवाही को गंभीरता से लिया जाएगा तथा इसे न्यायालय की अवमानना माना जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तस्करी करके लाए गए बच्चे को उत्तर प्रदेश के दंपती को सौंपने को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई की। इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपियों को अग्रिम जमानत दे दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों की जमानत रद्द की और मामले की गंभीरता न समझने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट और उत्तर प्रदेश सरकार दोनों को फटकार लगाई।
पीठ ने कहा कि आरोपी दंपती बेटा चाहते थे और उन्होंने चार लाख रुपये में बच्चा खरीद लिया। जबकि वे जानते थे कि बच्चा चोरी करके लाया गया है। हाईकोर्ट ने भी जमानत आवेदनों पर संवेदनहीनता से कार्रवाई की। इसके चलते आरोपी फरार हो गए। कोर्ट ने कहा कि ऐसे आरोपी समाज के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं। जमानत देते समय हाईकोर्ट को कम से कम यह शर्त तो लगानी ही चाहिए थी कि आरोपी हर सप्ताह थाने में हाजिरी देंगे। वहीं उत्तर प्रदेश सरकार की खिंचाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि हम निराश हैं। जमानत के बाद सरकार की ओर से कोई अपील क्यों नहीं की गई? कोई गंभीरता नहीं दिखाई गई।
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