'अनुपस्थिति पर बर्खास्त डॉक्टरों को एकमुश्त मुआवजा दे यूपी सरकार', सुप्रीम कोर्ट ने दिया निर्देश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डॉक्टरों की रिट याचिकाओं पर विचार करते हुए 3 मई, 2010 को जारी बर्खास्तगी आदेश रद्द कर दिया था। शीर्ष कोर्ट ने पाया कि उनमें से किसी ने भी यह दलील नहीं दी कि बर्खास्तगी के आदेश के बाद उनके पास कोई रोजगार नहीं था। यह भी नहीं कहा कि सेवा खत्म होने से उनकी कोई आय नहीं थी।
नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को संशोधित किया है, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार को 2010 में लंबे समय तक अनुपस्थित रहने के कारण बर्खास्त किए डॉक्टरों की सेवाएं बहाल करने का निर्देश दिया गया था। शीर्ष कोर्ट ने कहा, राहत देने से पहले अधिकार क्षेत्र का हवाला देने वाले लोगों के आचरण पर विचार किया जाना चाहिए। पीठ ने निर्देश दिया, राज्य सरकार डॉक्टरों को तीन महीने के अंदर 2.50-2.50 लाख रुपये का एकमुश्त मुआवजा दे, जिससे न्याय के हित पूरे होंगे।
राज्य सरकार की अपील पर जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, यह स्वीकार्य तथ्य है कि डॉक्टर 4-5 साल से अधिक समय तक लगातार अनुपस्थित रहे। हाईकोर्ट ने डॉक्टरों की रिट याचिकाओं पर विचार करते हुए 3 मई, 2010 को जारी बर्खास्तगी आदेश रद्द कर दिया था। हालांकि, शीर्ष कोर्ट ने पाया कि उनमें से किसी ने भी यह दलील नहीं दी कि बर्खास्तगी के आदेश के बाद उनके पास कोई रोजगार नहीं था। यह भी नहीं कहा कि सेवा खत्म होने से उनकी कोई आय नहीं थी। पीठ ने कहा, संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट क्षेत्राधिकार हमेशा विवेकाधीन होता है और राहत देते समय व्यक्तियों के आचरण को ध्यान में रखना चाहिए।
अपील में राज्य सरकार का तर्क था कि हाईकोर्ट ने सेवा समाप्ति के आदेश के तथ्यों को नजरअंदाज किया। वर्षों से अनुपस्थित कुछ हजार डॉक्टरों के खिलाफ जांच करना अव्यावहारिक था। उसने दलील दी, संविधान के अनुच्छेद 311 (2) के दूसरे प्रावधान के खंड (बी) का सहारा लिया और प्रतिवादी डॉक्टरों की नौकरी खत्म कर दी गई।
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