अंबेडकर जयंती की पूर्व संध्या पर प्रबुद्ध जन गोष्ठी हुई संपन्न

Apr 13, 2025 - 22:33
Apr 13, 2025 - 22:35
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अंबेडकर जयंती की पूर्व संध्या पर प्रबुद्ध जन गोष्ठी हुई संपन्न

गुना (आरएनआई) स्वर्गीय नाथूलाल मंत्री जन कल्याण न्यास गुना द्वारा प्रति वर्ष अनुसार इस वर्ष भी संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव जी अंबेडकर की जयंती के अवसर पर संविधान निर्माता अंबेडकर और भविष्य का भारत. विषय पर ज्ञान प्रबोधिनी प्रबुद्ध जन गोष्ठी रविवार को नारायणा गार्डन गुना में संपन्न हुई। जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित मोहन नारायण गिरी राष्ट्रीय संयोजक सामाजिक समरसता मिशन ने भारत रत्न डॉ भीमाराम अंबेडकर के जीवन पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में हीरालाल बैरवा ने की एवं अध्यक्षता न्यास के सचिव अनिल श्रीवास्तव द्वारा की गई। कार्यक्रम का संचालन डॉ मनोज रघुवंशी ने किया एवं आभार ओम पाल सिंह परमार ने माना। कार्यक्रम में अतिथियों का परिचय वीरेंद्र अहिरवार ने दिया एवं न्यास का परिचय गोपाल स्वर्णकार द्वारा दिया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ भारत माता एवं डॉ भीमराव अंबेकर के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन के साथ गोष्ठी का आरंभ हुआ।

गोष्ठी को संबोधित करते हुए मोहन नारायण गिरी ने कहा कि आपने क्या प्राप्त किया यह महत्पूर्ण नहीं हे आपने समाज को क्या दिया यह महत्पूर्ण हे। 3 हजार साल तक भारत पर विदेशियों का आतंक रहा। ओर आखिरी में अंग्रेज आए और वह भी हार थक कर भारत छोड़ गए अब भारत को खतरा वामपंथियों से हे। उन्होंने कहा कि . भीमराव अंबेडकर के सामाजिक विचार मुख्य रूप से सामाजिक न्याय, समानता, स्वतंत्रता, और बंधुत्व पर केंद्रित थे। वे जाति व्यवस्था, वर्ण व्यवस्था, और सामाजिक असमानता के विरोधी थे और सभी के लिए एक समान और न्यायपूर्ण समाज की वकालत करते थे।

डॉ. अंबेडकर के सामाजिक विचार:
उन्होंने कहा कि डॉ. अंबेडकर का मानना था कि सामाजिक न्याय का अर्थ है सभी नागरिकों के लिए सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संसाधनों और अधिकारों का समान वितरण हो। वे जाति, धर्म, लिंग या किसी अन्य आधार पर भेदभाव के खिलाफ थे और सभी को समान अवसर और अधिकार देने की वकालत करते थे.। डॉ अंबेडर ने स्वतंत्रता को सभी मनुष्यों का एक बुनियादी अधिकार माना और सभी को अपनी स्वतंत्रता का आनंद लेने और अपनी क्षमता के अनुसार विकसित होने का अधिकार होना चाहिए, इस विचार को बढ़ावा दिया.। डॉ. अंबेडकर ने बंधुत्व को सभी लोगों के बीच सहयोग और सद्भाव का प्रतीक माना और सभी को एक साथ रहने और एक-दूसरे के साथ सम्मान और समझ के साथ व्यवहार करने का आग्रह किया.। डॉ. अंबेडकर ने जाति व्यवस्था को हिंदू धर्म की एक गंभीर समस्या के रूप में देखा और इसे सामाजिक असमानता और उत्पीड़न का स्रोत माना. उन्होंने वर्ण व्यवस्था को भी सामाजिक असमानता का एक कारण माना और इसे समाप्त करने की वकालत की. डॉ. अंबेडकर दलितों के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध थे और उन्होंने शिक्षा, संगठन और संघर्ष के माध्यम से उनके अधिकारों के लिए लड़ने की बात कही। उन्होंने शिक्षा, भूमि सुधार और अन्य सामाजिक सुधारों के माध्यम से समाज में बदलाव लाने की वकालत की.। उन्होंने भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार के रूप में एक ऐसा संविधान तैयार किया जो स्वतंत्रता, समानता और न्याय के मूल्यों को स्थापित करता हो. 
डॉ. अंबेडकर ने अपने सामाजिक विचारों के माध्यम से भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया और उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं।


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