अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की सफलता के पीछे पूर्व पीएम नेहरू की आत्मनिर्भरता का विजन
जयराम रमेश ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा, इसरो की सफलता के पीछे की जिस मुख्य वजह को नहीं पहचाना जा रहा है, वह यह है कि नेहरू ने पहले दिन से ही आत्मनिर्भरता पर जोर दिया था, जबकि दिल्ली में कुछ आवाजें अधिक अमेरिकी भागीदारी की वकालत कर रही थीं। कुछ ऐसे भी लोग थे, जो तत्कालीन सोवियत संघ के साथ घनिष्ठ सहयोग की बात कर रहे थे।
नई दिल्ली। (आरएनआई) भारत के 'मिशन मून' चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के साथ ही इसरो ने दुनिया में अपना कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। वहीं, देश में इसका श्रेय लेने को लेकर राजनीतिक शुरू हो गई है। कांग्रेस ने शनिवार को कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की सोच और आलोचनाओं के बावजूद दुनिया की बड़ी शक्तियों से सहयोग नहीं लेने के उनके फैसले के कारण अंतरिक्ष अन्वेषण में इतने अच्छे परिणाम मिल रहे हैं।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि पाकिस्तानी मीडिया में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की शानदार उपलब्धियों पर काफी टिप्पणी की गई है और इस तथ्य को लेकर दुःख जताया गया है कि पाकिस्तान की अंतरिक्ष एजेंसी स्पेस एंड अपर एटमॉसफेयर रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (SUPARCO) की स्थापना 1961 के अंत में ही हो गई थी, जबकि भारत में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) की स्थापना उसके बाद 1962 के फरवरी महीने में हुई थी, लेकिन दोनों की उपलब्धियों में जमीन-आसमान का अंतर है।
रमेश ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा, इसरो की सफलता के पीछे की जिस मुख्य वजह को नहीं पहचाना जा रहा है, वह यह है कि नेहरू ने पहले दिन से ही आत्मनिर्भरता पर जोर दिया था, जबकि दिल्ली में कुछ आवाजें अधिक अमेरिकी भागीदारी की वकालत कर रही थीं। कुछ ऐसे भी लोग थे, जो तत्कालीन सोवियत संघ के साथ घनिष्ठ सहयोग की बात कर रहे थे।
लेकिन पहले नेहरू और फिर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इस बात को लेकर बिल्कुल स्पष्ट थीं कि अंतरिक्ष कार्यक्रम को भारतीय पेशेवरों द्वारा तैयार, नियंत्रित और संचालित किया जाना चाहिए। कांग्रेस नेता ने कहा कि इसके लिए वे होमी भाभा, विक्रम साराभाई, सतीश धवन, पीएन हक्सर और कई अन्य लोगों से निश्चित रूप से सलाह लेते थे और वे उनसे प्रभावित थे।नेहरू युग में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए मजबूत नींव रखी गई और विशाल बुनियादी ढांचे का निर्माण हुआ। ऐसा उन तीखी आलोचनाओं के बावजूद किया गया, जिनमें कहा जाता था कि एक बेहद गरीब देश होने के कारण भारत इस तरह के निवेश के लिए समर्थ नहीं हो सकता है। रमेश ने कहा, बावजूद इसके यह एक आत्मनिर्भर और वैज्ञानिक रूप से उन्नत राष्ट्र का दृष्टिकोण ही है, जो आज भरपूर लाभ दे रहा है।
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